Friday, May 29, 2009

shree shiv tandav st




॥ शिव तांडव स्तोत्रम् ॥
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले , गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।
डमड्डमड्ड्मड्ड्मन्निनादवड्ड्मर्वयं , चकार चण्डताण्डवं तनोतु न: शिव:शिवम् ॥ 1 ॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्ध्दनि ।
धगध्दगध्दगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके , किशोरचन्द्रशेखरे रति: प्रतिक्षणं मम ॥ 2 ॥
धराधरेन्द्ननन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुध्ददुर्धरापदि , क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ 3 ॥
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-कदम्बकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
दान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे , मनोविनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ 4 ॥
सहस्त्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-प्रसूनधुलिधोरणीविधुसराङध्रिपीठभू: ।
भुजंगराजमा्लया निबध्दजाटजूटक: , श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखर: ॥ 5 ॥
ललाटचत्वरज्वलध्दनञ्ज्यस्फुलिंगभा-निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयुखलेखया विराजमान शेखरं , महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु न: ॥ 6 ॥
करालभाल्पट्टिकाधगध्दगध्दगज्ज्वलध्दनञ्ज्याहुतीकृतप्रचण्डपंचसायके ।
धराधरेन्द्ननन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥ 7 ॥
नवीनमेघमण्डलीनिरुध्ददुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथिनीतम: प्रबन्धबध्दकन्धर: ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुर: , कलानिधानबन्धुर: श्रियं जगदधुरन्धर: ॥ 8 ॥
प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभावलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबध्दकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं , गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ 9 ॥
अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमञ्जरी , रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं , गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ 10 ॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमभ्दुजंगमश्र्व्स , द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिध्दिमिध्दिमिद्ध्वनन्मृदंगतुन्गमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्ड्ताण्डव: शिव: ॥ 11 ॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठ्यो: सुहृद्विपक्षपक्षयो: ।
तृणारविन्दचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो: , समप्रवृत्तिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ 12 ॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन् , विमुक्तदुर्मति: सदा शिर:स्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोचनो ललामभाललग्नक: , शिवेति मन्त्रामुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ 13 ॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं , पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुध्दिमेति सन्त्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं , विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम् ॥ 14 ॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं , य: शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां , लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भु: ॥ 15 ॥
॥ इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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Hanuman Chalisha




श्री हनुमान चालीसा

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।

बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ।।

बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार ।

बल बुद्घि विघा देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।।


जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीस तिहुं लोग उजागर ।।

रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।।

महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।

कंचन बरन विराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ।।

शंकर सुवन केसरी नन्दन । तेज प्रताप महा जगवन्दन ।।

विघावान गुणी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।।

सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा । विकट रुप धरि लंक जरावा ।।

भीम रुप धरि असुर संहारे । रामचन्द्रजी के काज संवारे ।।

लाय संजीवन लखन जियाये । श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।।

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।

सहस बदन तुम्हरो यश गावै । अस कहि श्री पति कंठ लगावै ।।

सनकादिक ब्रहादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ।।

यह कुबेर दिकपाल जहां ते । कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राजपद दीन्हा ।।

तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना । लंकेश्वर भये सब जग जाना ।।

जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लाल्यो ताहि मधुर फल जानू ।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही । जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।।

दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।

राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।

आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक ते कांपै ।।

भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ।।

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।।

संकट ते हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।।

सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ।।

और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ।।

चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्घ जगत उजियारा ।।

साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ।।

अष्ट सिद्घि नवनिधि के दाता । अस वर दीन जानकी माता ।।

राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।

तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ।।

और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेई सर्व सुख करई ।।

संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।

जय जय जय हनुमान गुसांई । कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।।

जो शत बार पाठ कर सोई । छूटहिं बंदि महासुख होई ।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्घि साखी गौरीसा ।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महं डेरा ।।


।। दोहा ।।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप ।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।। 


My Fav. Bhajan

श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम

 लोग करे मीरा को यूँ ही बदनाम ....

सांवरे की बंसी को बजने से काम

राधा का भी श्याम वो तो मीरा का भी श्याम.......

जमुना की लहरी बंसी वट की छैया

किसका नहीं कहो कृष्ण कन्हैया

श्याम का दिवाना तो सारा ब्रजधाम.......लोग करे..

 कौन जाने बांसुरीयाँ किसको बुलाये

जिसके मन भाये वो उसीके गुण गाये

कौन नहीं बंसी की धुन का गुलाम....राधा का भी...

श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम लोग करे मीरा को यूँ ही बदनाम ....

सांवरे की बंसी को बजने से काम राधा का भी श्याम वो तो मीरा का भी श्याम

Ram Bhajan

पायो जी मैंने पायो जी मैंने राम रतन धन पायो .. 
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो . 
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो . 
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो . 
सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो . 
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो .

Ram Bhajan

ठुमक चलत रामचंद्र ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैंजनियां .. 
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय . धाय मात गोद लेत दशरथ की रनियां .. 
अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि . तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियां .. 
विद्रुम से अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर . सुभग नासिका में चारु लटकत लटकनियां .. 
तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद . रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां ..

Ram bhajan

दाता एक राम ,भीखारी सारी दुनियाँ |

राम इक देवता ,पुजारी सारी दुनियाँ  ||   दाता एक राम

द्वारे पे उसके जाके ,कोई भी पुकारता  |

परम कृपा से ,अपनी भव से उबारता |

ऐसे दीनानाथ पर, बलिहारी सारी दुनियाँ  ||  दाता एक राम

छोड के प्रपंच सारे, के ले विचार तू |

प्यारे प्रभू को अपने ,मन में निहार तू |

बिना हरी नाम के , दुःखयारी सारी दुनियाँ ||   दाता एक राम

नाम का प्रकाश, जब अंदर जगायेगा  |

प्यारे श्रीराम का , तू दर्शन पायेगा  |

वही एक ज्योत हैं, अंधियारी सारी दुनियाँ   ||   दाता एक राम

दाता एक राम ,भीखारी सारी दुनियाँ  |

bhajan

नाम जपन क्यों छोड़ दिया

क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा
सत्य बचन क्यों छोड दिया

झूठे जग में दिल ललचा कर
असल वतन क्यों छोड दिया

कौड़ी को तो खूब सम्भाला
लाल रतन क्यों छोड दिया

जिन सुमिरन से अति सुख पावे
तिन सुमिरन क्यों छोड़ दिया

खालस इक भगवान भरोसे
तन मन धन क्यों ना छोड़ दिया

Wednesday, May 27, 2009

Neem and It's Usages

Processed so as to be ECONOMICAL

1. Its mix with other pesticides adds power to them.
2. Normal growth of harmful pests is prevented or that they are rendered sterile thus incapacitated.
3. It is preventive when sprayed on healthy plants prior to any presence of harmful pests. It is curative
with a devastating effect on such pests if they are present.
4. A very small, easy to mix quantity of a liter of our neem oil in 200 L of water suffices on an acre of cultivated land leaving a farmer to reap happiness to his toil.
5. As a fertilizer : When mixed with urea, it saves the later by 50% and also saves a precious loss of nitrogen from soil by 15%.
6. It does not demand special and expensive storage conditions. Without loss of slightest efficacy it remains as it is over a long duration of time.

Tuesday, May 26, 2009

Bhajan

i like the bhajan ......
.....kiratn ki hai raat baba aaj thaane aano hai, thaane kol nibhaano hai.........

Thursday, May 7, 2009

gulab hai sada ke liye...........
Posted by Picasa